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समूचा विपक्ष मोदी के खिलाफ या ‘आप’ के साथ?

रोहित श्रीवास्तव
रोहित श्रीवास्तव
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देश का दिल कही जाने वाली राजधानी दिल्ली मे राजनीतिक पार्टियों का संघर्ष जारी है। दिल्ली मे 7 तारीख को विधानसभा की 70 सीटो के लिए मतदान होना है। गौरतलब है दिल्ली विधान सभा चुनाव मे भाग्य आज़मा रहे 673 उम्मीदवारों का फैसला 10 तारीख को होगा। देश की ‘दशा’ और ‘दिशा’ निर्धारित करने वाली दिल्ली अपने ‘मुखिया’ को चुनने के लिए पूरी तरह तैयार है। ‘आरोप-प्रत्यारोप’ एवं ‘बयानबाजी’ से मिलेजुले इस चुनाव मे यह देखना बेहद दिलचस्प हो गया है कि आखिरकार ‘राजनीति-का-ऊंट’ किस ओर करवट लेता है। मसलन एक बात एकदम स्पष्ट हो जाती है कि दिल्ली मे संघर्ष ‘आप’ के केजरीवाल और बीजेपी की किरण बेदी के बीच मे है।

इसके अलावा एक विचित्र तथा अजीबोगरीब लड़ाई टीवी चैनलो और विभिन्न न्यूज़ एजेंसियो के चुनावी सर्वो के बीच मे भी जारी है। एक सर्वे अगर बीजेपी को पूर्ण बहुमत देता है तो दूसरा आम आदमी पार्टी को। सभी चुनावी सर्वो मे बस एक बात समान है कि आगामी चुनाव मे काँग्रेस की हालत दिल्ली मे और दयनीय होने वाली है।

दिल्ली चुनाव कई मायनों मे वाकई ऐतिहासिक होने वाला है। ‘अस्मिता’ और ‘प्रतिष्ठा’ के इस चुनाव मे सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने अपनी सारी ताकत झोक दी है। इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि शायद यह पहली बार हुआ है जब बीजेपी ने किसी विधानसभा चुनाव मे अपने आला एवं वरिष्ठ नेताओ, सांसदो और केंद्र सरकार के मंत्रियो के साथ अपने ‘ब्रह्मास्त्र’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार के लिए पूरी तरह से उतार दिया। भारतीय राजनीति का ‘अहम पड़ाव’ जो है दिल्ली चुनाव। यह चुनाव ‘आप’ के साथ देश की राजनीति का भविष्य तय करने वाला है।

इस चुनाव मे अत्यंत महत्वपूर्ण और समझने वाली बात यह है कि बीजेपी (या कहूँ मोदी) विरोधी सभी पार्टियों ने केजरीवाल को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन दे दिया है। अब इसके पीछे के कारणो को भी समझना पड़ेगा। यह सभी को मालूम है कि इन चुनावो से पहले हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर मे मोदी लहर के सहारे बीजेपी अप्रत्याशित जीत के साथ ‘विजय-रथ’ पर सवार थी। यह सच है बीजेपी को दिल्ली मे आम आदमी पार्टी की बढ़ती शक्ति का एहसास हो गया था तभी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व अन्ना सहयोगी, समाजसेवी और प्रथम आईपीएस ऑफिसर किरण बेदी को आनन-फानन मे बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। संभवतः उन्हे दिल्ली मे बीजेपी के किसी क्षेत्रीय नेता के चेहरे पर भरोसा नहीं था। मतलब साफ है दिल्ली मे लड़ाई कांटे की हो गई है।

जीतन राम मांझी के बगावती सूरो से नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भी नुकसान हुआ है।

जीतन राम मांझी के बगावती सूरो से नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भी नुकसान हुआ है।

अब तो दिल्ली के आने वाले नतीजे ही बताएँगे कि उनका यह ‘विश्वास’ किस हद तक खरा उतरता है। उन्हे यह भी मालूम है कि अगर बीजेपी दिल्ली का रण किसी तरह से जीत गयी तो फिर मोदी और बीजेपी के विजयी रथ को रोकना उनके लिए अपने राज्य मे असंभव सा हो जाएगा।

रोहित श्रीवास्तव

(आलेख मे प्रस्तुत विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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