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‘राजनीतिक मोहरा’ न बन जाए जसोदाबेन ‘मोदी’?

रोहित श्रीवास्तव
रोहित श्रीवास्तव
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अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित अखबार वॉशिंगटन पोस्ट की एक खबर ने देश के राजनीतिक गलियारे मे एक बार फिर से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जसोदाबेन मोदी को ‘केंद्र’ मे ला खड़ा किया है। वॉशिंगटन पोस्ट की खबर के अनुसार, ‘ जसोदाबेन ने इस बात पर दुख जाहिर किया है कि ओबामा के साथ उनकी पत्नी है पर मोदी ने उन्हें नहीं बुलाया। लेकिन वह आज भी उम्मीद कर रही हैं कि एक दिन वह दिल्ली में अपने पति के साथ होंगी। उल्लेखनीय है कि इस खबर का एक हिस्सा यह भी कहता है कि “पेशे से टीचर रहीं जसोदाबेन की अपने पति से सालों से बात नहीं हुई है”। गौरतलब है जसोदाबेन से मोदी की शादी महज़ 17 साल की उम्र में हो गई थी जिसके तीन साल बाद ही दोनों रजामंदी से अलग भी हो गए थे। उसके बाद की मोदी की ऐतिहासिक जीवन यात्रा जो चायवाले से होते हुए एक आरएसएस कार्यकर्ता, संघप्रचारक, बीजेपी कार्यकर्ता, मुख्यमंत्री से चल कर आज भारत के शीर्ष पद ‘प्रधानमंत्री’ तक आ पहुंची है।

“मसलन एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाती है कि मोदी अपनी पत्नी जसोदाबेन से सालो से संपर्क मे नहीं है। दूसरा यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी 12 से वर्ष से अधिक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, तब यह जागरूक मीडिया कहाँ थी जो आज के दिन मे जसोदाबेन को ‘इंसाफ’ दिलाने का स्वांग रच रही है? वह सभी लोग कहाँ थे जो आज खुद को जसोदाबेन का शुभचिंतक बताते हुए नरेंद्र मोदी पर हमला करते है? या फिर स्वयं ‘जसोदाबेन’ कहाँ थी जो अब आरटीआई लगा कर खुद को प्रधानमंत्री की पत्नी बताते हुए प्रश्न पर प्रश्न……और इंटरव्यू पर इंटरव्यू दे रही हैं? यह बताना आवश्यक है कि इस पूरे मामले ने तब तूल पकड़ा जब 2014 के लोकसभा चुनावो मे मोदी ने वडोदरा से नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे मे खुद को शादीशुदा बताते हुए जसोदाबेन को अपनी पत्नी माना था।”

मोदी के अर्श से लेकर फर्श तक का संघर्ष जगजाहिर है,  इतने वर्षो मे जसोदाबेन ने चुप्पी क्यों साधी हुई थी? सवाल यह भी उठता है उन्होने यह आवाज़ मोदी के गुजरात के सीएम रहते (या पहले) क्यों नहीं उठाई? अगर उठाई थी तब यह जागरूक मीडिया कहाँ थी?

लोकसभा चुनाव से पूर्व फरवरी 2014 मे, जब मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, तो मीडिया को दिये अपने एक इंटरव्यू मे उन्होने कहा था “मुझे नहीं लगता वो मुझे कभी कॉल करेंगे’। चुनाव के नतीजे आए और मोदी मुकद्दर का सिकंदर बन भारत के 15वें प्रधानमंत्री बने। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही जसोदाबेन के बोल बदले-बदले से लगने लगे थे। कई बार उन्होने मीडिया के माध्यम से कहा कि “अगर मोदी उन्हें बुलाएं तो वह उनके साथ रहने के लिए तैयार हैं। जहां तक प्रश्न है विपक्षी पार्टियों और कुछ समाजसेवी संगठनो का, जो जसोदाबेन को ‘इंसाफ’ दिलाने की वकालत कर रहे हैं। उनके लिए यही कहूँगा देश मे अनगिनत मामले है जहां पत्नियों को उनका अधिकार नहीं मिल पा रहा है, क्या इतनी ही शिद्दत से इन लोगो ने उन असहाय महिलाओ की अगुवाई भी की है।

जहां तक जसोदाबेन की बात है तो आपको यह समझना पड़ेगा की नरेंद्र मोदी और जसोदाबेन ने अपना सारा जीवन अकेले बिताया है मतलब दोनों के बीच कभी ‘वैवाहिक-ज़िंदगी’ पनपी ही नहीं।  अतः मुझे जसोदाबेन के मामले मे ‘इंसाफ’ और ‘न्याय’ की बाते अप्रासंगिक होने के साथ ‘बेबुनियादी’ और ‘गैरजरूरी’ लगती हैं।

ऐसा लगता है देश-विदेश की मीडिया और विपक्षी पार्टियो के पास नरेंद्र मोदी को ‘टारगेट’ करने के लिए कोई मुद्दा नहीं बचा है इसलिए ‘जसोदाबेन’ की आड़ मे वे अप्रत्यक्ष तौर पर मोदी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। ज्ञात हो कि ‘उनका’ गुजरात दंगे का पिछला मुद्दा लोकसभा चुनावो मे देश के आवाम ने पूरी तरह से नकार दिया था।

खैर मुझे जसोदाबेन की मंशा पर कोई ‘शंका’ नहीं है, पर ‘आशंका’ है कि कहीं वह न चाहते हुए भी मीडिया और राजनीतिक उठक-पटक की एक ‘मोहरा’ भर बन कर न रह जाए।

लेखक: रोहित श्रीवास्तव

(आलेख मे प्रस्तुत विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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