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देश मे कौन तय कर रहा है ‘अपराध-दोष’?

रोहित श्रीवास्तव
रोहित श्रीवास्तव
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पूर्व केंद्रीय मंत्री और नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के नवरत्नों मे से एक कॉंग्रेस सांसद शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा पुस्कर थरूर की रहस्यमयी मौत के मामले मे एक और सनसनीखेज मोड़ आने से देश की पुलिस और जांच एजेंसियो की कार्य प्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है। दिल्ली पुलिस ने अब सुनन्दा की मौत को आत्महत्या न मानते हुए धारा 302 के तहत अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।

यह कोई पहला वाकया नहीं है जब किसी मामले मे पुलिस या फिर संबन्धित जांच एजेंसी ने एक बड़ा ‘यू-टर्न’ लिया हो। इससे पहले भी देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई से लेकर विभिन्न राज्यों की पुलिस ने अधिकांश आपराधिक चर्चित मामलो मे अजब-गजब पलटी खायी है।

“गौरतलब है बहुत दिनो तक चर्चाओ मे रहे आरुषि मर्डर केस मे भी सीबीआई और नोएडा पुलिस ने पहले काफी जांच-पड़ताल एवं तफ्तीश के बाद आरुषि के माँ-बाप डॉ नूपुर तलवार और डॉ राजेश तलवार को क्लीन चिट दे दी थी। यहाँ तक की इस मामले मे सीबीआई ने सूप्रीम कोर्ट मे क्लोज़र रिपोर्ट तक दाखिल कर दी थी। अचानक से सीबीआई जागी और अतत: परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के साथ कोर्ट ने तलवार-दंपत्ति को ही इस बहुचर्चित मामले मे दोषी माना। उल्लेखनीय है कि 14 वर्षीया आरुषि 16 मई 2008 को नोएडा स्थित अपने घर पर रहस्यमयी हालतों में मृत पाई गई थी।”

सुनन्दा केस मे भी दिल्ली पुलिस करीबन एक साल से चुप्पी साधे हुए थी। आकस्मात ऐसा क्या हुआ की ‘मौत की आंशंका’ वाला जिन्न दिल्ली पुलिस की बोतल से बाहर आ गया। इस मामले मे आया यह दिलचस्प मोड़ अपने आप मे सांकेतिक है। मसलन जिस समय सुनन्दा की संदेहात्मक परिस्थितियो मे मौत हुई तब केंद्र मे काँग्रेस नेत्रत्व वाली यूपीए सरकार थी जिसमे स्वयं शशि थरूर केंद्रीय मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की कैबिनेट मे शामिल थे।

दोनों ही मामले देश की पुलिस और जांच एजेंसीयो की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाते है? वैसे यू-टर्न के मामले मे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई अव्वल स्थान पर है।

बात चाहे हाल मे सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ केस में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देने की हो, कोयला घोटाले में सीबीआई द्वारा सूप्रीम कोर्ट मे दाखिल क्लोज़र रिपोर्ट की हो, ऐसे न जाने कितने मामले है जहां राजनीतिक दबाव या बाहरी दबाव के कारण पुलिस के रुख मे अप्रत्याशित बदलाव आ जाता है।

सवाल है कौन दोषी है, कौन बेगुनाह, देश मे यह कौन तय करता है?

यह सवाल वर्तमान मे इसलिए भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि बीते दिनो मे कई ऐसे मामले भी उभर कर आए है जो देश की न्याय-व्यवस्था और न्यायपालिका पर सीधे आघात पहुंचाते हैं।

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