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कभी बनो तुम दुर्गा……
ले लेती ‘देवी’ अवतार
बन जाती ‘दानवी’ काली……
जब करना हो ‘दुष्टो’ का संहार
ले आती ‘प्राण’ यम से
जब बनी आप ‘सती’
‘सीता’ बन कर दी पवित्रता की अग्नि-परीक्षा
हर काल मे रहा सर्वोपरि रहता
आपके लिए आपका ‘पति’
कूद पड़ी यज्ञ मे ‘परमेश्वर’ की शान मे
न ‘भाई’ आपने पिता ‘दक्ष’ की भी दीक्षा
गंगा-यमुंगा की तरह पावन आप
मात्र स्पर्श से लोगो के धो-देती पाप
हे नारी आप महान है
आपको मेरा दिल से नमन के साथ
एक बड़ा वाला ‘सलाम’ है
‘जोधा’ बनके ‘अकबर’ को लुभाया
‘रंभा’ हो या ‘कामिनी’
आपके सौन्दर्य के जाल से
आज तक कौन बच पाया ?
द्रौपदी आप ही थी न
जो बनी ‘धर्म के महाभारत’ का कारण
‘मंथरा’ भी आप ही थी
जिसने ‘कैकयी’ की ममता मे ‘अधर्मी-आग’ लगा
रचा दिया ‘रामायण’
हे नारी आप महान है
आपको मेरा दिल से नमन के साथ
एक बड़ा वाला ‘सलाम’ है
‘सुपर्णखा’ आप ही थी
जिसने गैर-मर्द पर नज़र डाली
सीता भी आप
जो बलशाली ‘रावण’ के सामने
हिम्मत न हारी
(नारी को समर्पित रोहित श्रीवास्तव की रचना)
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